अन्न की कीमत ( लघुकथा)# लेखनी वार्षिक कहानी लेखन प्रतियोगिता -11-Feb-2022
अन्न की कीमत (लघुकथा)
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सुबह से निकले रजनी और उसका बेटा अभय रात हो गई उन्हें जब एयरपोर्ट से बाहर निकले । भूख से दोनों का बुरा हाल था, अपने से ज्यादा चिंता रजनी को अपने बेटे की सता रही थी जो खाने में बहुत नखरे करता था ये नहीं खाना वो नहीं खाना, घर में उसकी पसंद नापसंद का पूरा ध्यान रखने वाली रजनी इसी बात से परेशान हो रही थी कि इस अनजान शहर में उसकी पसंद का खाना मिल भी पाऐगा या नहीं।सुबह ही वो बिना रोटी खाए ही सफर के लिए निकला था बस थोड़ा सा अंकुरित मूंग और कॉफी ही तो पीया था।
अगले दिन ही कॉलेज में एडमिशन के लिए पहुंचना था। होटल पहुंच कर अभय ने खाने में दस रोटी आर्डर की तो वहां का मैनेजर हैरानी से देखने लगा, दो लोगों के लिए दस रोटी बहुत ज्यादा होगी। अभय को तो लग रहा था रोटियां जैसे उसकी मम्मी बनाती है वैसी ही छोटी और पतली होगी जो वो चिकन के साथ छह सात आराम से खा लेगा और बाकी मम्मी खा लेगी। रजनी नानवेज नहीं खाती है तो उसने जब दाल के लिए कहा और एक कटोरी दाल की कीमत 150 रुपए सुनी तो यह सोच मना कर दिया कि अपने खाने के लिए इतने पैसे खर्च करना ठीक नहीं, वो नमक और चटनी के साथ का लेगी।जब खाना आया और रोटी का पैकेट खोला, वो मोटी मोटी जली सी रोटियां देखकर बेटा मम्मी का मुंह देखने लगा पर भूख से बुरा हाल था तो बिना नखरे किए खाना खाया और रजनी नमक चटनी के साथ रोटियां खाते वक्त उन रात के बचे आटे की लोई जिनमें खट्टापन आ जाता था फैंक दिया करती थी, हर निवाले पर उस रोटी की कीमत और जो दाल उसने नहीं मंगवाई अंदाजा कर रही थी कितना अन्न हम यूं ही घर में बर्बाद कर देते हैं जिसकी कीमत घर से बाहर आने पर पता चलती है।
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कविता झा काव्या कवि
# लेखनी
##लेखनी वार्षिक प्रतियोगिता
११.०२.२०२२
Seema Priyadarshini sahay
11-Feb-2022 08:13 PM
बहुत बढ़िया
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